परमार्थ के मार्ग

परमार्थ के मार्ग में जीव को
उतना बल मिलेगा
सहन शक्ति का शरीर मन में
जितना संबल बनेगा
दुखी लाचार का निष्काम भाव से
जीवन का निर्वाह होगा
कर्म (वैसा) श्रद्धा सहनशक्ति अहंकार
शून्य का वाहक बनेगा
जाति धर्म की खातिर बलिदान करे
आदर का भागी बनेगा
भाईचारा विश्व दृष्टिकोण सर्व सुख की
चाह का आधार होगा
पाप से कलुषित मन सुस्रजन की बात
भला कैसे करेगा
ज्ञानेंद्रियां भी न सहायक आत्मानुभूति
कैसे हो सके
परमपिता परमात्मा विद्यमान मुझ में
और आप में भी
सहन शक्ति से पारम्भ होता
आसान प्रत्याहार भी
सरल राह प्रारंभ
सहनशक्ति से करना पड़ेगा
खुल सकेंगे ज्ञानचक्षु
बाहर भीतर से शुद्ध तो होना पड़ेगा।
वहीं तक पाँव हैं मेरे ,जहाँ तक है दरी मेरी !
इसी में सब समेटा है ,यही जादूगरी मेरी !!


उठती है निगाह जिधर नज़र आता है कोई बिकता हुआ

उठती है निगाह जिधर बाज़ार नज़र आता है
कोई बिकता हुआ कोई खरीदार नज़र आता है

सिर्फ जरूरतों के उसूल पर जीता है जमान,
जो न किसी काम का वो बेकार नज़र आता है

आते-जाते हर शख्स की है निगाह मुझ पर,
शायद मुझमें कोई कारोबार नज़र आता है

ख्वाहिशों के दश्त में हर आदमी गुम है,
रूह है गिरवी जेबों में उधार नज़र आता है