सिर्फ शह और मात

जब कई हाथ
उठते हैं साथ साथ
और कुछ उंचे स्वर में
हो रही हो बात
तब सत्ता चौंक कर
ढुंढती है
कहां बिछी है बिसात
उसे तो दिखती है सिर्फ शह और मात

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